
कब शुरू हुई, आखिरी बार कब हुई और क्या होगा फायदा? जाति जगणना से जुड़ीं 10 बड़ी बातें

Caste Census: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जातिगत जनगणना कराने वाली है. इस बात की जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार (30 अप्रैल, 2025) को कैबिनेट ब्रीफिंग के दौरान दी. देश में शुरू होने वाली जनगणना के साथ ही इसके आंकड़े भी जुटाए जाएंगे. जनगणना के फॉर्म में ही जाति का भी कॉलम रखा जाएगा. इस मुद्दे को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर था.
समाज की जनसंख्या की गणना करना, उसका वर्णन करना, उसे समझना साथ ही लोगों की किन चीजों तक पहुंच है और किन चीजों से उन्हें वंचित रखा गया है, ये जानना न केवल सामाजिक वैज्ञानिकों के लिए बल्कि नीति निर्माताओं और सरकार के लिए भी जरूरी है. इसके लिए जनगणना अपनी तरह की प्रक्रियाओं में से एक है. हालांकि जनगणना के आलोचकों का मानना है कि समाजिक संरचना को पूरी तरह से समझने के लिए जातिगत जनगणना को नियमित कराने का सुझाव देते हैं.
कब हुई थी पहली बार जातिगत जनगणना?
पहली जातिगत जनगणना सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) के रूप में 1931 में हुई थी. इसका उद्देश्य हर व्यक्ति से उसकी जाति का नाम पूछना था, ताकि सरकार यह पुनर्मूल्यांकन कर सके कि कौन से जाति समूह आर्थिक रूप से सबसे खराब स्थिति में हैं और कौन से बेहतर स्थिति में हैं.
जाति जनगणना का उद्देश्य केवल आरक्षण का मुद्दा ही नहीं है बल्कि जाति जनगणना उन बड़ी संख्या में मुद्दों को सामने लाएगी जिन पर किसी भी लोकतांत्रिक देश को ध्यान देने की जरूरत है, खासतौर से उन लोगों की संख्या जो हाशिये पर हैं या जो वंचित हैं या वे किस तरह का व्यवसाय करते हैं. इससे बेहतर नीतियां और रणनीतियां बनाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा संवेदनशील मुद्दों पर ज्यादा तर्कसंगत बहस भी हो सकेगी.
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