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पहलगाम हमले पर मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान, ‘इस्लाम में तो हत्या…’

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पहलगाम हमले पर मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान, ‘इस्लाम में तो हत्या…’

Conference of Jamiat Ulema-e-Hind : देश की मौजूदा राजनीतिक पृष्ठभूमि के मद्देनजर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यसमिति (वर्किंग कमेटी) की बैठक के साथ एक दो दिवसीय महत्वपूर्ण प्रतिनिधि सम्मेलन 3 और 4 मई को नई दिल्ली में शुरू होने वाली है. यह बैठक कल यानी शनिवार (3 मई, 2025) को सुबह 11 बजे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मुख्यालय में अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित होगी. वहीं, इस सम्मेलन के बाद जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी प्रेस कांफ्रेंस को भी संबोधित करेंगे.

इस बैठक में देश के सभी राज्यों के अध्यक्ष, महासचिव, जिम्मेदार और अन्य प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. इस सम्मेलन के अहम एजेंडे में वक्फ कानून को लेकर कानूनी संघर्ष, पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, देश में बढ़ती नफरत और तनाव, संविधान की रक्षा और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बावजूद धर्म की बुनियाद पर मस्जिद-मदरसों पर बुलडोजर कार्रवाई कर देने जैसे ज्वलंत मुद्दे शामिल हैं.

देश के संविधान निर्माण और आजादी की लड़ाई जमीयत की रही अहम भूमिका

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से एक बयान जारी किया गया है. बयान में जमीयत ने कहा, “हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है जहां विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग देशभक्ति और एकता के साथ प्यार और भाईचारे से रहते आए हैं. इसका सबसे बड़ा कारण हमारा संविधान है और यह भी एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि देश को गुलामी से आजादी मिलने के बाद संविधान निर्माण में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की एक अहम भूमिका रही है. इसके अलावा देश की आजादी की लड़ाई में भी जमीयत उलेमा-ए-हिंद का योगदान इतिहास का एक उज्ज्वल अध्याय है.

 विविधता में एकता के सिद्धांत को मानती है जमीयत

देश में बढ़ती नफरत और सांप्रदायिकता को हराने, सेकुलरिज्म को मजबूत करने और संविधान और लोकतंत्र की हिफ़ाजत को यकीनी बनाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष को जमीयत उलेमा-ए-हिंद अपना कर्तव्य समझती है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद एकता में विविधता और विविधता में एकता के सिद्धांत को न केवल मानती है बल्कि धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत की बुनियाद पर लोगों की मदद और मार्गदर्शन को अपने आचरण से बार-बार साबित करती आई है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद नफरत और सांप्रदायिकता को देश की एकता और सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा मानती है. शांति, एकता और सहिष्णुता इस देश की चमकदार परंपरा रही है, लेकिन अब कुछ ताकतें सत्ता के घमंड में इस परंपरा को समाप्त करने पर तुली हुई हैं. उन्हें देश की एकता से ज्यादा सत्ता और राजनीतिक स्वार्थ प्यारा है.

इस्लाम में आतंकवाद की कोई जगह नहीं- मौलाना अरशद मदनी

जमीयत उलमा-ए-हिंद के नजदीक आतंकवाद, चाहे वो किसी भी रूप में हो, एक अत्यंत निंदनीय और अस्वीकार्य कार्य है. पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने अपने बयान में कहा, “इस्लाम में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है और जो लोग ऐसा करते हैं वे इंसान नहीं कहे जा सकते. निर्दोषों की हत्या किसी भी धर्म में जायज नहीं है और इस्लाम में तो एक निर्दोष की हत्या को पूरी मानवता की हत्या के बराबर बताया गया है.”

हालांकि, इस घटना के बाद देश की मीडिया ने जिस तरह इसे धार्मिक रंग देने की खतरनाक साजिश की इसकी मौलाना मदनी ने कड़ी निंदा की और कहा कि हमले के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना स्थानीय लोगों ने धर्म से ऊपर उठकर जिस तरह पर्यटकों को आतंकियों से बचाया और जख्मियों को अपनी पीठ पर लादकर अस्पताल पहुंचाया, वह प्रशंसा के योग्य है. यह इस बात का जीता-जागता सबूत है कि कश्मीर के लोग आतंकवाद के खिलाफ हैं और शांति व एकता के समर्थक हैं.

आतंकी हमले के बाद बनी स्थिति पर सम्मेलन में किया जाएगा विचार

सम्मेलन में इस आतंकी हमले और उसके बाद पैदा हुई स्थिति पर गंभीर विचार-विमर्श किया जाएगा. नए वक्फ कानून को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद जो जन और कानूनी संघर्ष कर रही है, उसकी जानकारी लगातार मीडिया में आती रहती है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस कानून को असंवैधानिक और धार्मिक मामलों में सीधी दखलअंदाजी मानती है. उसका मानना है कि इस कानून से वक्फ की सुरक्षा नहीं हो सकती, बल्कि अगर यह कानून लागू रहा तो देशभर में मुस्लिमों की वक्फ संपत्तियां तबाह हो जाएंगी.

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के खिलाफ पहली रिट याचिका जमीयत की है- मदनी

महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इस कानून के खिलाफ सबसे पहले रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने ही दायर की थी. 5 मई को जिन पांच याचिकाओं पर सुनवाई होनी है, उनमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पहले नंबर पर है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की ओर वक्फ कानून की पैरवी के लिए वरिष्ट अधिवक्ता कपिल सिब्बल पेश होंगे. सम्मेलन के दौरान वक्फ कानून के विभिन्न पहलुओं और जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कानूनी लड़ाई पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. इसके अलावा अन्य अहम मुद्दे भी विचार-विमर्श में आएंगे और आगे की रणनीति तय की जाएगी.

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